दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का चुनावी रिश्ता क्यों बनता जा रहा है कागजी गठबंधन

दिल्ली में कांग्रेस और आप का चुनावी गठबंधन यूपी में राहुल गांधी और अखिलेश यादव के फिर से साथ आने जैसा ही लगता है. वे दोनों तो रस्मअदायगी के नाम पर एक प्रेस कांफ्रेंस भी कर लिये, अरविंद केजरीवाल के जेल चले जाने के बाद दिल्ली में तो ऐसा कोई संकेत भी नहीं दिखाई पड़ रहा है.

दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन काफी मुश्किल था. 2019 में भी अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहते थे, लेकिन तब पावर शीला दीक्षित के हाथ में था, और उनके अड़ जाने से गठबंधन नहीं हो सका – 2024 में भी दिल्ली कांग्रेस के नेता  गठबंधन नहीं चाहते थे, फिर भी ना-ना करते करते हां हो ही गया.

कांग्रेस और आप का गठबंधन भी करीब करीब वैसा ही है, जैसा यूपी में अखिलेश यादव और मायावती का हाथ मिला लेना, या फिर बिहार में  लालू यादव और नीतीश कुमार का अचानक गले मिलने का फैसला कर लेना.

तक दोनों दलों के जो समर्थक एक दूसरे जानी दुश्मन बने होते हैं, गठबंधन की घोषणा होते ही होली और ईद की तरह गले मिलने का दिखावा तक दोनों दलों के जो समर्थक एक दूसरे जानी दुश्मन बने होते हैं, गठबंधन की घोषणा होते ही होली और ईद की तरह गले मिलने का दिखावा  करने लगते हैं – लेकिन दोनों में से किसी का मन तो मिलता नहीं. दोनों में से कोई भी एक दूसरे को मन से स्वीकार नहीं कर पाता.

दिल्ली जैसे इलाके में वोट ट्रांसफर जैसा कोई मसला नहीं है, जैसा यूपी और बिहार में चुनावी गठबंधनों के लिए चुनौती होती है – लेकिन लोगों में ये मैसेज देना भी उतना आसान नहीं होता कि ‘हम साथ साथ हैं’.

कांग्रेस और आप के बीच चुनावी गठबंधन में भी वही सब बातें नजर आ रही हैं जो यूपी में राहुल गांधी और अखिलेश यादव के साथ आने के  बावजूद महसूस किया जा रहा है. यूपी गठबंधन का आलम ये है कि लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के लिए चुनाव प्रचार के आखिरी बावजूद महसूस किया जा रहा है. यूपी गठबंधन का आलम ये है कि लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के लिए चुनाव प्रचार के आखिरी  दिन दोनों नेता मिल कर एक प्रेस कांफ्रेंस किये हैं – और उसमें भी ऐसा लग रहा था जैसे रस्मअदायगी की जा रही हो.

जैसे यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीटों का बंटवारा हुआ है, दिल्ली में भी करीब करीब वही फॉर्मूला देखने को मिलता है. ये हाल तब है जब 2019 के चुनाव में सभी सात सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही और आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर.

गठबंधन के तहत आम आदमी पार्टी ने अपने पास चार सीटें रखी और कांग्रेस को तीन सीटें दी है. दिल्ली के चुनाव कैंपेन में जो देखने को मिल रहा है, उसमें गठबंधन जैसे लक्षण तो अब तक नहीं नजर आ रहे हैं.

आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपने हिस्से की चार सीटों पर चुनाव प्रचार कर रही है, और उसके पीछे नेताओं की अपनी दलील है. कहने को तो दोनों तरफ से कहा जा रहा है कि चुनाव प्रचार के लिए संयुक्त टीम बनेगी, लेकिन अभी ऐसे कोई संकेत तो नहीं मिले हैं – आखिर ऐसे अलग अलग कैंपेन करने की असली वजह क्या हो सकती है?

आम आदमी पार्टी का अपने कैंपेन पर ही क्यों फोकस है 

31 मार्च को रामलीला मैदान में हुई INDIA गठबंधन की रैली हुई थी. रैली में सुनीता केजरीवाल को जो अहमियत दी जा रही थी, साफ साफ नजर आया था. सुनीता केजरीवाल को सोनिया गांधी की बगल में बिठाया गया था – और उनका ठीक ठाक भाषण भी हुआ.

अब अगर अरविंद केजरीवाल को वोटिंग से पहले जमानत नहीं मिली तो आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी स्टार प्रचारक सुनीता केजरीवाल ही अब अगर अरविंद केजरीवाल को वोटिंग से पहले जमानत नहीं मिली तो आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी स्टार प्रचारक सुनीता केजरीवाल ही  हुईं. सुनीता केजरीवाल का नाम पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से भी ऊपर है – और ध्यान देने वाली बात ये है कि जेल से छूट कर बीजेपी और  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जोरदार हमला बोलने वाले संजय सिंह का नाम सूची में सातवें नंबर पर है.

ये सूची किसी नियुक्ति की तो नहीं है, लेकिन एक खास जिम्मेदारी दिये जाने की तो है ही, आगे ऐसी और भी चीजें सामने आ सकती हैं. जाहिर है, सुनीता केजरीवाल दिल्ली के कैंपन पर भी नजर रख रही होंगी. सुनीता केजरीवाल का ये भी कहना रहा है कि वो अरविंद केजरीवाल के  मैसेंजर की भूमिका तक सीमित हैं – तो क्या अरविंद केजरीवाल जैसे जेल से सरकार चला रहे हैं, वैसे ही दिल्ली का कैंपेन भी मॉनिटर कर रहे  हैं? आम आदमी पार्टी की तरफ से जैसे चीजों को प्रोजेक्ट किया जा रहा है, लगता तो ऐसा ही है.

ये ठीक है कि आम आदमी पार्टी ने फरवरी में ही अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी, और कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची अभी अभी आई है. और अभी तक आम आदमी पार्टी के कैंपेन  का एक दौर पूरा भी हो चुका है. अब तो वो दूसरे दौर का कैंपेन भी शुरू कर चुकी है – दोनों के  साथ चुनाव प्रचार न कर पाने की एक वजह कांग्रेस के उम्मीदवारों की घोषणा न होना भी हो सकता है.

ध्यान देने वाली बात ये भी है कि आम आदमी पार्टी ने दूसरे दौर के चुनाव कैंपेन की घोषणा कर दी है, लेकिन अब भी वो अपने हिस्से की चार सीटों तक ही फोकस है. आम आदमी पार्टी पूर्वी दिल्ली, पश्चिम दिल्ली, दक्षिण दिल्ली और नई दिल्ली लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ रही है.

दिल्ली कांग्रेस के नेता आप को नहीं पसंद करते   

सवाल ये है कि आखिर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के मिल कर कैंपेन शुरू करने से कौन रोक रहा है?

क्या ऐसा दोनों दलों की तरफ से हो रहा है? या आम आदमी पार्टी चुनाव प्रचार में कांग्रेस से परहेज कर रही है? या फिर कांग्रेस को ही आम आदमी पार्टी के राजनीतिक एजेंडे से कोई दिक्कत हो रही है?

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का चुनावी गठबंधन दिल्ली के अलावा गुजरात में भी है, लेकिन पंजाब में नहीं है. क्या दिल्ली में आम आदमी पार्टी के अपनी सीटों तक सीमित रहने की ये भी कोई वजह हो सकती है?

सवाल तो ये भी उठता है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी क्या अपने ही उम्मीदवारों के लिए वोट मांगेगी या सुनीता केजरीवाल कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए भी चुनाव प्रचार के लिए जाएंगी?

देर से उम्मीदवारों की सूची घोषित करने के अलावा कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के हिंदुत्व के एजेंडे से भी दिक्कत हो रही होगी. वैसे भी दिल्ली कांग्रेस के नेता तो गठबंधन से पहले अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भी वैसे ही हमला बोला करते थे, जैसा बीजेपी. वो तो अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस नेताओं को सड़क पर उतर कर बयान देते देखा गया है – हालांकि, गिरफ्तारी के दिन और 31 मार्च की रैली के बाद से कांग्रेस नेताओं का वो रूप तो दिखा नहीं.

हो सकता है कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के जय श्रीराम के नारे से भी परहेज होता हो. गुजरात जाकर अरविंद केजरीवाल के नोटों पर लक्ष्मी और गणेश की तस्वीरें लगाने से भी दिक्कत होती हो, वैसे ये दिक्कतें तो कांग्रेस की उस मुश्किल से काफी अलग है, जिसमें आम आदमी पार्टी उसकी जगह लेती जा रही है.

कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी के साथ ताजा मुश्किल ‘आपका रामराज्य’ अभियान भी हो सकता है. संजय सिंह ने अभियान के लिए वेबसाइट लॉन्च होने की घोषणा की है. एक प्रेस कांफ्रेंस में संजय सिंह ने बताया कि वेबसाइट पार्टी की राम राज्य की अवधारणा के साथ-साथ  आम आदमी पार्टी की सरकारों के कामों को भी प्रदर्शित करेगी. बोले, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राम राज्य को साकार करने के लिए  पिछले 10 साल में अच्छे स्कूल, मोहल्ला क्लीनिक, मुफ्त पानी और बिजली के साथ साथ महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा जैसे अद्भुत काम किये हैं.

कहने को तो राहुल गांधी ने अखिलेश यादव के साथ संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस के लिए मौका राम नवमी का ही चुना, लेकिन आम नेताओं का जय श्रीराम बोलना तो उनको भी वैसा ही लगता होगा जैसे ममता बनर्जी का गुस्सा फूट पड़ता है.

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हम आपको बता दें कि गुजरात में पार्टी का यह अधिवेशन 64 साल के बाद हो रहा है। इस अधिवेशन का विषय “न्याय पथ : संकल्प, समर्पण, संघर्ष” होगा। इस अधिवेशन के जरिए जिला कांग्रेस कमेटियों (डीसीसी) की शक्तियां बढ़ाने, संगठन सृजन के कार्य को तेज करने, चुनावी तैयारियों और पदाधिकारियों की जवाबदेही तय करने का निर्णय किया जाएगा। पार्टी के शीर्ष नेता, कार्य समिति के सदस्य, वरिष्ठ नेता और अखिल भारतीय कमेटी के सदस्य अधिवेशन में शामिल होंगे।

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