लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, नतीजे आ गए हैं और केंद्र में सरकार भी बन गई है, ऐसे में एग्जिट पोल जैसे मुद्दे बेमतलब हैं
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एग्जिट पोल को नियंत्रित करने वाली जनहित याचिका को राजनीतिक हित याचिका करार देते हुए इसे खारिज कर दिया और कहा कि- देश में शासन चलने दें और चुनाव-गाथा बंद करें.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बीएल जैन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की और कहा कि- सरकार चुनी जा चुकी है, अब चुनाव के दौरान क्या होता है, इसकी गाथा बंद करें और अब देश में शासन शुरू करें. इस संदर्भ में पीठ ने कहना है कि- चुनाव आयोग इस मुद्दे को संभालने में सक्षम है और वह चुनाव आयोग को नहीं चला सकता.
भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत अस्सी के दशक में हुई, जिसके तहत चुनाव में मतदान खत्म होने के बाद जब मतदाता अपना वोट डालकर निकल रहे होते हैं, तब उनसे पूछा जाता कि- उन्होंने किसे वोट दिया, फिर इसी सैंपल मतदान के आधार पर बताया जाता कि- नतीजे क्या रहनेवाले हैं
याद रहे 1998 में चुनाव आयोग ने ओपिनियन पोल, एग्जिट पोल आदि पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था, लेकिन बाद में विभिन्न पोल को लेकर कानून में संशोधन किया गया और संशोधित कानून के तहत चुनावी प्रक्रिया के दौरान जब तक अंतिम वोट नहीं डाल दिया जाता है, तब तक एग्जिट पोल नहीं दिखाए जा सकते हैं.
ओपिनियन पोल, एग्जिट पोल के मार्फत कई बार राजनीतिक हित साधने के प्रयास किए जाते हैं लेकिन अब ये तेजी से अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हैं जिसके कारण आनेवाले समय में इनका न तो कोई महत्व बचेगा और न ही इनका कोई गंभीर असर होगा