कांग्रेस में खलनायक क्यों बन गये ये लोग

लोकसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस ने पिछले दो बार के चुनाव से बेहतर प्रदर्शन किया हो लेकिन मध्यप्रदेश राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और दिल्ली ही नहीं कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश – उड़ीसा में उसका प्रदर्शन अत्यंत खराब रहा है। और कहा जा रहा है कि यदि इन राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन थोड़ा भी बेहतर होता तो लोकसभा चुनाव के परिणाम कुछ और होते, नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बन पाते। ऐसे में कांग्रेस के उन नेताओं पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं जिन्होंने केन्द्रीय नेत्तृत्व को बेहतर प्रदर्शन का भरोसा दिलाया था।

सबसे बुरी स्थिति कांग्रेस की कहीं हुई है तो वह मध्यप्रदेश है जहाँ कांग्रेस कोई सीट नहीं जीत पाई। २१ सीटों वाले इस राज्य में कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष तक बदल दिया था लेकिन यहां के कद्‌दावर माने जाने वाले कमलनाथ भी अपनी सीट नहीं बचा पाये, उनका पुत्र नकुलनाथ बुरी तरह से पराजित हुआ। गांधी परिवार के इस नायक को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं , ऐसे में एक सवाल तो यह भी है कि क्या वे इडी सीबीआई की डर से भाजपा की गोद में जा बैठें हैं, ऐसे में एक सवाल तो यह भी है कि क्या अब कमलनाथ पर भरोसा किया जाना चाहिए। और अब तो कांग्रेसी ख़ेमे ने उन्हें सबसे बड़ा खलनायक भी सिद्ध करने में लगे हैं।

दूसरा नाम राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का है। अशोक गहलोत भी अपने बेटे को नहीं जीता सके और कहा जा रहा है कि यदि सचिन पायलट ने मोर्चा नहीं संभाला होता तो राजस्थान की स्थिति भी मध्यप्रदेश की तरह हो जाती।

तब छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल क्या अब नायक नहीं रह गये, विधानसमा चुनाव में मनमर्जी चलाकर सत्ता गँवाने वाले भूपेश बघेल यदि लोकासभा का चुनाव स्वयं हार गये तो इसकी वजह क्या है। क्या सत्ता में बने रहने के दौरान उनपर भ्रस्टाचार का आरोप ही प्रमुख कारण है कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और अहंकार भी एक बड़ा कारण है।

आम कार्यकताओं की नजर में भूपेश बघेल क्यों खलनायक बन चुके है छोर क्या इसकी खबर हाईकमान को नहीं है।

तब उड़ीसा, दिल्ली, झारखंड और हिमाचल में कांग्रेस का खलनायन कोन है। चर्चा तो कई नामों का है ऐसे में कमलनाथ, भूपेश बघेल और अशोक गहलोत को लेकर जिस तरह के सवाल उठ रहे हैं, क्या केंद्रीय नेतृत्व इससे अनभिज्ञ है, या फिर इन तीनों ही नेताओं में सत्ता में बने रहने के दौरान जो पैठ दिल्ली में बनाई है। उसकी वजह ते हाईकमान अंधेरे में है।

कहना मुश्किल है लेकिन इन तीनों ही नेताओ की अपने-अपने राज्यों में छवि बिगड़ चुकी है। ऐसे में आने वाले दिनों में केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय का पार्टी के आम कार्यकर्ताओं को इंतजार है।

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हम आपको बता दें कि गुजरात में पार्टी का यह अधिवेशन 64 साल के बाद हो रहा है। इस अधिवेशन का विषय “न्याय पथ : संकल्प, समर्पण, संघर्ष” होगा। इस अधिवेशन के जरिए जिला कांग्रेस कमेटियों (डीसीसी) की शक्तियां बढ़ाने, संगठन सृजन के कार्य को तेज करने, चुनावी तैयारियों और पदाधिकारियों की जवाबदेही तय करने का निर्णय किया जाएगा। पार्टी के शीर्ष नेता, कार्य समिति के सदस्य, वरिष्ठ नेता और अखिल भारतीय कमेटी के सदस्य अधिवेशन में शामिल होंगे।

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