क्या क्षत्रिय विहीन संसद बनाना चाहते हैं नरेंद्र मोदी और अमित शाह……?

क्षत्रियों के प्रति इन पांच वर्षों में धुर विरोधी क्यों बन गये मोदी और शाह इनका गुप्त एजेंडा क्या है?

इसका विश्लेषण पढ़े ये दोनों गुजरात में राज्य की सत्ता भोगते हुए, क्षत्रियों के चरित्र का स्वाद बहुत अच्छे से चख कर आये हुए है। जिसका इन्हे कड़ा अनुभव है। उसी पूर्वाग्रह को दिल में लिए बैठे हैं। बात बहुत पुरानी हैं। शंकर सिंह बाधेला 3 बार के सांसद व केन्द्र में मंत्री रहे थे। अटलजी के कद के बराबरी के नेता रहे हैं, व 96- 97 मे गुजरात में सी.एम. भी रहे।उस दौरान मोटा भाई मोदी गुजरात की राजनीति में कही पिक्चर में भी नहीं थे, परन्तु संगठन में बड़े पावरफुल थे। वे सीधे ही सी.एम.बनने को लालाइत थे।इधर केशुभाई पटेल को हटाकर बाघेला स्वयं सी.एम.बनना चाह रहे थे। बात नहीं बनी तो, इन्होंने सरकार गिराने का प्रयास शुरु कर दिया। दिल्ली से सुलह हेतु अडवाणी को भेजा गया, बात नही बनी, वापस बैरंग लौटे।मुरली मनोहर को भेजा, बात फिर नहीं बनी, बैरंग लौटे। स्वयं अटलजी को आना पड़ा, व बाघेला की 2 मुख्य मागे मानी कि, सी.एम.को हटाकर दुसरा बना देंगे, व दूसरी मोदी को गुजरात संगठन से हटाकर दिल्ली भेज देंगे। इस तरह बडी मुश्किल से सरकार बची थी। मोदीजी एक साल के अज्ञात वास में 8×8 की कोटड़ी में दिल्ली में रहे। ये दर्द एक राजपूत नेता वाघेला का, मोदी जी आज तक नहीं भूल पाये है। अज्ञात वास को कोई कैसे भूल सकता है। अज्ञात वास पूरा होते ही मोदी पुन: गुजरात पहुंचे व जल्दी ही सी.एम.की कुर्सी हथिया ली। एंव निर्बाध रूपसे 12 वर्ष तक गुजरात में तूती बोलती रही। मोटा भाई यही रुकने वाले नहीं थे‌। गुजरात से सीधा छलांग लगाकर, दिल्ली की कुर्सी को धर दबोचा।

अब छोटा भाई के कारनामें देखिए। जब गुजरात सरकार में मोटा भाई सी.एम. बने व छोटा भाई गृह मंत्री हुआ करते थे, शोहराबुद्दीन मर्डर केस में सीबीआई जांच मे छोटा भाई को जेल जाना पड़ा। जमानत नहीं मिल रही थी। संयोग से जिस न्यायालय में, हिमाचल के कांग्रेसी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की बडी बेटी जज थी, उसमें जमानत की अर्जी लगी, व कानूनी प्रकिर्या के आधार पर खारिज कर दी गई। छोटा भाई शाह, आग बबूला हो गये व ठान लिया कि मौका आने पर मजा चखाउगा।बाद में शाह जी एक टोप राजपूत नेता श्री राजनाथ सिंह को हटाकर ग्रह मंत्री बन बैठे। एंव हिमाचल के सी.एम.वीरभद्र सिंह की छोटी बेटी की शादी के दिन ही गृह मंत्री रहते हुए,शाह जी ने केन्द्रीय एजेंसी से छापा डलबाया।भारतीय संस्कृति में दुश्मन भी ऐसा घिनौना कुकृत्य नहीं करता है,जैसा शाह ने किया। इस घटना से वीरभद्र सिंह इतने शर्मसार व व्यथित हुए कि, मानसिक सन्ताप से ऊबर नही पाये, व उनको इस दुनिया से रुखस्त होना पड़ा। इसमे कहां किसका दोष था। सिर्फ और सिर्फ जातिय बैर भाव एंव बदले की कार्यवाई। अकारण ही एक महान राजनैतिक हस्ती का घिनौना अन्त कर दिया, इस छोटे गुजराती ने। पुन:उसी तर्ज पर छोटे गीदड़ द्वारा बड़े भारी राजपूत शेर का शिकार किया। बाद में जांच पूर्ण होने पर पता चला कि, उस छापे में कुछ भी आपति जनक नहीं मिला था। बीजेपी के अंधभक्त राजपूत आज भी,क्यों इनके प्रेम में पागल हो रहे हो? क्यो समाज के शेरो को गीदड़ों से मरवा रहे हैं? अब तो बीजेपी के अंधभक्तों सोचो,इन गुजराती भेड़ियों ने, एक एक करके, शेर मारने में महारथ हासिल कर रखी है। यह तो आपको एक बानगी मात्र बताई है. आगे बताता हूं। ये क्या करने वाले है।आपके कानो को विश्वास नहीं होगा।
मै न तो कोई खोजी पत्रकार हूं, व न ही कोई भविष्य वक्ता हूं, परन्तु विश्वनीय गुप्तसूत्रों के आधार पर, दिल्ली दरबार के इन दोनों भाइयों के हिडन् ऐजेन्डे का आपके समकक्ष पर्दा फास कर रहा हूँ।अब ये मोटा भाई को जो कुछ करना है, 2029 के पूर्वाद्ध तक पुरा कर लेगा, व छौटा भाई को पी.एम.बनाते हुए, चुनावो से 6 माह पहले सकिर्य राजनीति से सन्यास लेते हुए पद से इस्तिफा दे देंगें।
इन दोनों को,अपने हिडन् ऐजेन्डे को लागू करने में,सबसे बडी बाधा,क्षत्रिय समाज बन रहा है। ये उनका गुजरात का राजनैतिक अनुभव है।इनको आशंका है कि, अगर लोक सभा 2024 के चुनाव में दबग छवि के 40 -50 क्षत्रिय सांसद बन पहुंच गये तो, ये क्षत्रिय छोटा भाई शाह को कभी पी.एम.नही स्वीकारेगें। क्षत्रिय विरोध करेगें व योगी को प्रधानमंत्री बनाने पर जोर देंगे। एंव विपक्षी भी उनके साथ आ जाएगा, इस तरह खेल बिगड़ जायेगा। अत: न रहे बांस न बजे बांसुरी, बाले सिद्धांत पर इन्होंने कार्य शुरु कर दिया‌ है। दंबग छवि के सभी क्षत्रिय सांसदों के टिकिट काटकर, लोकसभा मे पहुंचने से रोक दिया गया।जनरल वि.के.सिंह का टिकिट इसी नीति के तहत काटा गया है। इनको पता था कि,जनरल बड़ा खुंखार है, इसने अपने सेवाकाल में ही काग्रेस सरकार से लडाई मांड दी थी। बमुश्किल सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से मामला निपटा था। गाजियाबाद राजपूत बाहुल्य सीट है।वहां से एक बार को छोडकर हमेशा राजपूत को टिकिट मिली और वे जीते है। जनरल की पिछली जीत 5 लाख से ऊपर थी।मोटा भाई भी इससे कम वोटो से जीते थे। जनरल साहब की टिकिट जान बुझ कर काटी गई है। झुन्झुनू व चुरु मे जाटो की टिकिट कटी, परन्तु जाटो को ही मिली।गाजियाबाद मे 5 लाख राजपूत वोटर हैं,फिर भी राजपूत की टिकट कटी,एंव एक बणिये को मिली। राजपूतों को बणियों, ब्राह्मणों से भीड़ाकर, राजपूतों की राजनीति खत्म करना चाहते है, ये दो भाई। बणियो के जहां मात्र 1 लाख मत दाता है,उसें टिकट दिया है। मोटा व छोटा भाई से पूछो, यहां कौन से वैज्ञानिक का फार्मूला लगाय है,अपने को भी पता तो लगे। इस फार्मूले को हल करने को दुनिया के बड़े बड़े वैज्ञानिक माथा धुन रहे हैं। लेकिन हल करने में असमर्थ है। गजेन्द्र सिंह शेखावत के सामने राजपूतों को आपस में भड़काकर, वसुंधरा ने नया संकट पैदा कर दिया है।
इसी प्रकार पूर्वोत्तर व यू.पी.मे 4-5 क्षत्रिय धुरंधरों की भी टिकटें काट दी गई है।.
यूपी मे यदि चुनावो में अच्छा बहुमत मिल जाता है तो, सरकार के गठन के बाद योगीजी को वापस मठ मे भेजने की तैयारी है। क्योंकि आज मोदी के बाद कोई लोकप्रिय नेता है, तो वो योगी बाबा है। जनता मोदी के बाद योगी को पी.एम.देखना चाह रही है। अत:मोदी के बाद कौन? योगी के नारे को भुलाना है, एंव छोटे भाई को पी.एम.बनाना है, तो योगी बाबा को 4 वर्ष पहले ही मठ में ध्यान लगाने भेजना जरुरी है। वैसे भी पिछले 1साल से पी.एम.ओ. व छोटा भाई के महकमें में, योगीजी को कोई तव्बजो नहीं दी जा रही है। पिछले दिनों यू.पी.मे हुए एक प्रोग्राम में पी.एम.के साथ योगीजी थे।समाप्ति पर पी.एम.का काफिला बीच सडक में योगी को छोड रवाना हो गया।योगी जी की लुंगी हवा मे लहराती हुई उड़ रही थी, व गाडियों से उडनेवाली मिट्टी से सने जा रहे थे। इस तरह बैईज्जति करने की भी हद हो गई है।
मोदी भाई को सबसे ज्यादा राजनाथसिंह का अहसानमंद होना चाहिए था, जिन्होंने अपना हक त्याग कर पार्टी संगठन में उनके नाम को पी.एम.हेतु प्रस्ताव रखे थे।उनको 5 साल तो गृह मंत्री रखा व दूसरे टर्म में मंत्रालय बदल दिया गया, क्योंकि छोटे भाई को पी.एम जो बनाना है।जिसका मलाल आज भी राजनाथसिंह जी, मन में लिए बैठे हैं। स्पष्ट हैं उन पर विश्वास नहीं रहा। केबिनेट में आज उनकी स्थिति दोयम दर्जे की है। पिछले दिनो पी.एम.के प्रोग्राम में साथ थे,सबको मालाएं डल गयी, परन्तु ये गर्दन को आगे करते ही रह गये। किसी ने इनकै गले में माला नहीं डाली।एक प्रोग्राम में पी.एम.के पिछे अकेले दुबके से खडे है। इनसे कोई बात ही नहीं कर रहा था। मनमोहन सिंह की सोनिया राज में जो स्थिती थी, वो ही आज राजनाथ सिंह की है। सब पी.एम.को घेरे खडे है. एक प्रोग्राम में बिल्डिग के अन्दर कोई कार्यक्रम होता है. ये साथ में चलते हैं तो, पी.एम.खुद इन्हे बाहर ही रोककर अन्दर चले जाते हैं.।इस तरह साथ ले जाकर बेइज्जती करवाई जा रही है. हद हो चुकी है. बाकी कुछ नही बचा है।
इन 10 वर्षो में एक भी क्षत्रिय को गुजरात सें एम.पी.का टिकिट नहीं मिला है।पुरुषोत्तम रुपाला द्वारा क्षत्रिय अस्मिता पर की गई अभद्रतापूर्ण टिपणियो के कारण गुजरात का पूरा क्षत्रिय समाज सडको पर आ गया है तथा राजकोट से उसकी टिकिट काटने की मांग कर रहा है.लेकिन मोटा भाई के कानों पर जूं तक नहीं रेग रही है। रुपाला का टिकिट नहीं काटा गया है।.
मोटा भाई छत्तीसगढ़ में रमणसिंह को खा गया,गुजरात में बाघेला को खाया, एम.पी. मे शिवराजसिह को खाया व राजस्थान में वसुन्धरा को खाया व अब योगी बाबा की बारी है। छोटा भाई हिमाचल प्रदेश के सी.एम.वीरभद्र सिंह को खा गया। मोटा भाई, छोटा भाई की ताजपोशी 2029 मे क्षत्रिय समाज के राजनेताओ की बलि देकर करना चाहता है। शायद किसी प्रखांड पण्डित ने इनको सलाह दी है कि, क्षत्रियों की बलि वेदी पर की गई ताज पोशि स्थाई व लम्बी होती है।
एम.पी.की 29 सीटो में से मात्र 1 सीट क्षत्रिय को दी गई हैं। हरियाणा मे तो कभी भी एम.पी. की ऐक भी सीट क्षत्रियो के हिस्से आई ही नहीं है।.राजस्थान मे गिनाने के लिए तो ईनके पास 4 सीटे क्षत्रियो के खाते मे बताई जा रही है. लेकिन इन चारों गुलाम राजपूतों को, इन्होने कसाई की तरह अन्दर तक टटोल कर देख लिया है कि, ये सिर्फ और सिर्फ अपने खुद का पेट भरने एंव पार्टी भक्ती तक सीमित हैं,इंन्हें क्षत्रिय समाज से कोई लेना-देना नहीं है एंवम् 2029 की ताज पोशी पर ये चारों चूं भी नहीं करेंगे। जयपुर ग्रामीण या राजसमंद सीट के लिए पार्टी की तरफ से बने पैनल में राजेन्द्र राठौड़ का नाम पहले नम्बर पर भेजा गया था, किन्तु दोनों भाइयों ने मिलकर, दिल्ली में उसको भी काट दिया था। कारण कि राजेंद्र राठौड़ तेज तर्रार व दबंग छवि का नेता हैं। इसलिए आचरण सन्देहास्पद लगा.कही ताजपोशी में कोई अड़ंगा न लगा दे।
इनको पहले से ही पता था कि ज्यो ज्यो हिडन् ऐजेन्डा ओपन होने लगेगा त्यो -2 क्षत्रिय समाज पार्टी से अलग होता जायेगा व पार्टी के विरुद्ध मतदान करने लगेगा.अत:उसकी भरपाई की व्यवस्था जाट समाज को साधने के लिए, धनकड़ को उपराष्ट्रपति बनाने के साथ ही आज से 2वर्ष पहले ही कर दी थी। चौधरी चरणसिंह को भारत रत्न देना भी जाटो को साधने का एक अच्छा और सफल प्रयास है। इन प्रयासों के कारण ही चुनावों से पहले, जाट आज धड़ाधड़ बीजेपी मे शामिल हो रहे हैं। होड मची हुई है। 6-7 जिलो मे प्रभाव रखने वाले जाट समाज को तो इन्होने 8 टिकिटे दे दी, व पूरे राजस्थान में फैले क्षत्रिय समाज को 4 सीटो पर समेट दिया है। शुभकरण ने 4 विधायक के चुनाव लडे, 3 में हारा, केवल एक जीता है। उसको इनाम स्वरूप एम.पी.का टिकिट दिया है। ज्योती मिर्धा 2 चुनाव हारकर काग्रेस से आई है,1विधायक का चुनाव बीजेपी मे हार गयी है, फिर भी जबरदस्ती इन दोनों के गले में टिकिट डाल दी है, भले ही ये दोनों हार जायें। भागीरथ चौधरी किशनगढ़ से विधायक का चुनाव हारा था, उसे फिर से अजमेर से एम.पी.का टिकट दे दिया गया। इन सीटों सें यदि क्षत्रियों को टिकट देते तो, शायद बीजेपी जीत जाती, लेकिन बीजेपी को तो दबंग क्षत्रिय विहीन संसद चलानी है,छोटे भाई को पी.एम बनाना है। क्षत्रिय समाज ने देश को बेदाग व ईमानदार छवि के 2-2 पी.एम.दिए हैँ। एक को भारत रत्न दे देते, तो इनका क्या बिगड़ जाता?? जिसके सही माइने में दोनों ही चरणसिह से पहले हकदार थे। लेकिन इनको तो क्षत्रियो का तो बंन्टाधार ही करना है।
देखो व सोचो क्षत्रिय बन्धुओ यह आपके साथ क्या खेल खेला जा रहा है.। जिस पार्टी के लिए आप समर्पित हो वो, आप को कैसा नाच नचा रही है??. आप सोच क्यों नही रहे हो?? क्षत्रियों का वर्चस्व आगामी पांच वर्षों में खत्म कर देगा, ये गुप्त एजेंडा। तो चिपके रहो,या तो जाटो की तरह अपनी शर्तो पर समर्थन देना सीख लो, नही तो समाज के प्रबुद्ध लोगों को मिल बैठकर, सभी छोटे-छोटे राजपूत संगठनों का विलय करके, ऐक राष्ट्रीय ऐजेंडा,कोमन मिनिमम प्रोग्राम बनाकर, एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी के गठन पर विचार विमर्श कर, निर्णय लेना चाहिए। नही तो शेर सिंह राणा,या आंध्रा के शेर टी राजा, रविन्द्र भाटी, जैसे युवा निडर कर्मठ योग्य नेता के नेतृत्व में,35 कौम को मिलाकर,अब सें ही पार्टी बनाने कि तैयारी शुरू कर दे।

*क्षत्रिय समाज का आज की प्रजातंत्रीय शासन व्यवस्था मे असफलता के मुख्य कारणों को यूं समझें* :—
क्षत्रिय समाज के लिए आज जग जाहिर हो चुका हैं कि, यह एक पार्टी विषेश का वोटर है! इसलिए न तो उसें बीजेपी पार्टी भाव दे रही है, न ही अन्य पार्टियां। किसी ऐक पार्टी के प्रति समर्पित होने वाला वोटर, उसको छोडकर कही नहीं जा सकता,उंन्हीं के साथ कालांतर में धोखा होता आया है, जैसे कांग्रेस वोटर्स के साथ पीछले दस में हुआ है। यही बीजेपी भी मानने लग गयी है कि, ये क्षत्रिय भी हमेशा-हमेशा के लिए तेरे हो गये है, और कही जाने वाले नहीं हैं।एंव इनको और कहीं ठौर नहीं है। इसी को गुलामी कहते है, इसें स्वतंत्रता नहीं कहते। गुलाम कभी सुखी नहीं रह सकता। जैसे गुलाम पांच पांडव, कभी सुखी नहीं रहे। गुलाम कोई भी हो,चाहे भाई हो,या नौकर।
राजतंत्र मे राजाओं के प्रति छुटभाईयों का समर्पित होना तो उचित था, क्योंकि उनके समर्थन में मर मिटने वाले छुट भाईयों को जागीरें मिल जाती थी।बीबी बच्चो के भरण पोषण का स्थाई समाधान हो जाता था। इस बात को युद्ध में मरने वाले बखूबी पहले से जानते थे।
समय ने पलटा खाया, राजशाही गई, प्रजाशाही (प्रजातंत्रीय शासन) आया,राजाओं ने हँसते हंसते अपने राज्य ,गढ व किले,राज व्यवस्था को सुपुर्द कर दिये, व मुंह से ऊफ तक नहीं निकली। ना नुकर करने वाले महाराजा कश्मीर, नबाब जूनागढ व निजाम हैदराबाद को इस नये राज सें क्या मिला। किसी को भी समर्पित होकर,आप कुछ नहीं पाते, सिर्फ और सिर्फ गुलामी के सिवाय।सब अच्छे से जानते हैं कि, निजाम व नबाब को भागकर पाकिस्तान में शरण लेनी पड़ी व महाराजा कश्मीर को तो उमर भर कश्मीर से बाहर रहकर मरना पड़ा। इसलिए ज्यादा किसी पार्टी के समर्पण के चक्र मे मत पडो। लोकतंत्र सत्ताधारी सुपर हीरो किसी के नही होते। लोकतंत्र में सिर्फ अपना नाम,अपनी संम्पति बढाने, अपने प्रदेश,अपनी जाती बिरादरी,के लिए ही आजके नेता लोग आते है। मोदी एंव शाह अब सिर्फ और सिर्फ खुद की ओबीसी को चमकाने,गुजरात मोडल,और पटेलों का नाम करना चाहते है।ओबीसी जाती सामंतवाद सें सबसे ज्यादा चिड़ने वालो मे से ऐक है। इसलिए मोदी शाह ने ये बात अच्छी तरह भांप ली है,और उसी नीति के चलते, अब राजपूतों के कट्टर दुश्मन, ओबीसी की सबसें बड़ी जनसंख्या, जाटों को गले लगा कर,क्षत्रिय राजनीति को खत्म करने पर तूले हुए हैं।
“राजा जोगी अग्न जल, जां की
उलटी रीत।
डरता रह्यजो,परसराम,अ
थोडी पाळे प्रीत।।

क्षत्रिय पिछले 50 वर्ष तक तो काग्रेस को अपनी दुश्मन पार्टी मानते हुए, उसके विरोध में मतदान करता रहा,एंव बीजेपी का अंधभक्त होकर,समर्पित हो गया। जबकि बीजेपी का सबसे ज्यादा फायदा ब्राह्मणों और जाटो ने उठाया‌।

अब भी राजपूतों ने अपना अलग झंडा डंडा खड़ा नहीं किया तो, भविष्य में तुम्हें कोई नहीं पुछेगा

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हम आपको बता दें कि गुजरात में पार्टी का यह अधिवेशन 64 साल के बाद हो रहा है। इस अधिवेशन का विषय “न्याय पथ : संकल्प, समर्पण, संघर्ष” होगा। इस अधिवेशन के जरिए जिला कांग्रेस कमेटियों (डीसीसी) की शक्तियां बढ़ाने, संगठन सृजन के कार्य को तेज करने, चुनावी तैयारियों और पदाधिकारियों की जवाबदेही तय करने का निर्णय किया जाएगा। पार्टी के शीर्ष नेता, कार्य समिति के सदस्य, वरिष्ठ नेता और अखिल भारतीय कमेटी के सदस्य अधिवेशन में शामिल होंगे।

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