शरद पवार की इस कोशिश की करीब से देखना हो तो बारामती सीट का अवलोकन करना चाहिए. क्योंकि पवार फैमिली की ये पारंपरिक सीट रही है और पार्टी में टूट के बाद इसी सीट पर पवार के लिए अधिक संकट है. लोकसभा चुनाव से पहले एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पारंपरिक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच नई रेखाएं खींच रहे हैं, अजित पवार द्वारा भाजपा के साथ सत्ता में बने रहने और पार्टी पर दावा करने के बाद बारामती लोकसभा क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं
लोकसभा चुनाव के लिए बिगुल बज चुका है. हफ्ते भर में ये संग्राम शुरू हो जाएगा. देशभर की लोकसभा सीटों से होते हुए जब नजर महाराष्ट्र की सियासी जमीन पर पड़ती है तो यहां एक बिखराव नजर आता है. दरअसल महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा चेहरा शरद पवार रहे हैं और इस बार के चुनाव से पहले उनके साथ बड़े फेरबदल हो गए हैं. पार्टी हाथ से गई, भतीजा घर से गया और इसका नतीजा ये हुआ कि जिन सीटों पर पवार की तूती बोलती थी, नए समीकरणों के बनने के बाद अब उन पर शरद पवार की मजबूती में सेंध लगी हुई दिख रही है. महाराष्ट्र के सियासी बिखराव की यही वजह है और वयोवृद्ध नेता शरद पवार इसी बिखराव को समेटने में जुटे हुए हैं.
पवार फैमिली की पारंपरिक सीट है बारामती
शरद पवार की इस कोशिश की करीब से देखना हो तो बारामती सीट का अवलोकन करना चाहिए. क्योंकि पवार फैमिली की ये पारंपरिक सीट रही है और पार्टी में टूट के बाद इसी सीट पर पवार के लिए अधिक संकट है. लोकसभा चुनाव से पहले एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पारंपरिक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच नई रेखाएं खींच रहे हैं, अजित पवार द्वारा भाजपा के साथ सत्ता में बने रहने और पार्टी पर दावा करने के बा दराजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच नई रेखाएं खींच रहे हैं, अजित पवार द्वारा भाजपा के साथ सत्ता में बने रहने और पार्टी पर दावा करने के बाद बारामती लोकसभा क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं.
क्योंकि भतीजे अजीत पवार की पत्नी सुप्रिया सुले के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं. अब सुप्रिया सुले के लिए ज्यादा वोट मांगने के लिए शरद पवार की ओर से डैमेज कंट्रोल किया जा रहा है.
अब बारामती पर है अजित पवार का वर्चस्व
यूपीए सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री बनने के बाद, शरद पवार ने बारामती निर्वाचन क्षेत्र का प्रभार भतीजे अजीत पवार को सौंप दिया था क्योंकि वह महाराष्ट्र में कैबिनेट मंत्री थे. इससे अजित पवार को बारामती विधान सभा पर अपना प्रभुत्व फैलाने का मौका मिल गया. पार्टी टूटने के बाद भी अजित पवार को बारामती शहर में भारी समर्थन हासिल है. इस पर पलटवार करते हुए पवार ने संभाजी काकड़े के साथ बीजेपी नेता चंद्रराव तावरे से मुलाकात कर पुरानी दोस्ती को फिर से हवाला दिया
शरद पवार फिर सक्रिय कर रहे हैं पुराने समीकरण
अजित पवार के राजनीति में सक्रिय होने के बाद मालेगांव सहकारी चीनी मिल के चुनाव में चंद्रराव तवरे और शरद पवार के बीच विवाद हो गया था. इसके बाद 2004 में चंद्रराव तावरे ने अजित पवार के खिलाफ चुनाव लड़ा. 40 साल बाद पवार उनके घर गए. पश्चिमी महाराष्ट्र में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच सामंजस्य बिठाना पवार की राजनीति की कुंजी बनता जा रहा है. 35 साल बाद शरद पवार ने भोर निर्वाचन क्षेत्र चली ताकि उनके बेटे संग्राम थोपे, जो कि कांग्रेस के विधायक हैं, पर्दे के पीछे से अजित पवार की मदद न कर सकें.
‘महायुति’ के लिए सुरक्षित दिख रही है बारामती सीट
बारामती लोकसभा क्षेत्र में छह में से दो विधानसभाएं बीजेपी की हैं. दौंड और खडकवासला विधायक निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा का आधार है.इंदापुर से दो बार के विधायक दत्तात्रेय भरणे अजित पवार के साथ हैं. चूंकि बारामती शहर में अजित पवार विधायक हैं, इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि सुप्रिया सुले का वोट शेयर घट सकता है. ऐसे समय में शरद पवार राजनीतिक विरोधियों के साथ तल्खी कम करने के लिए बैठकें कर रहे हैं. अजित पवार के समर्थन के कारण बारामती से सुप्रिया सुले को हमेशा बढ़त मिलती रही, लेकिन आगामी चुनाव में वोट शिफ्टिंग पैटर्न निर्णायक होगा तो शरद पवार बारामती में अपने पुराने साथियों से मिलकर नए समीकरण बना रहे हैं.
स्थानीय मुद्दों को दे रहे हैं तवज्जो
बारामती लोकसभा क्षेत्र इस समय सूखे के हालात से जूझ रहा है. इस समय अजित पवार से पहले शरद पवार ने पुरंदर और इंदापुर विधानसभा क्षेत्रों में सूखा बैठकें कीं. लोकसभा चुनाव को स्थानीय मुद्दों पर रखने की अपील की. जहां देवेंद्र फड़णवीस मोदी बनाम राहुल गांधी के बीच लड़ाई की कहानी गढ़ रहे थे, वहीं पवार ने चुनाव को स्थानीय मुद्दों पर स्थानांतरित करने की कोशिश की.