दिग्गज नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र डूमरखां ने कहा कि वह अपने साथियों के साथ बैठक में इस पर निर्णय लेंगे। लेकिन अगर यह फैसला लिया तो पूरे लाव-लश्कर और ताकत के साथ कांग्रेस में शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि उनके पढ़े-लिखे बेटे ने राजनीति को भी समझा है और नौकरशाही को भी। यह फैसला उसने बहुत सोच समझ और विवेक से लिया होगा। कांग्रेस को बेटे का नया घर बताते हुए उन्होंने कहा कि बेटे को तो नया घर मिल गया मैं सोच रहा हूं कि मैं पुराने घर में कब जाऊंगा।
मैंने अपनी ताकत अपने साथियों के दम पर बनाई है- बीरेंद्र सिंह
बीरेंद्र सिंह ने कहा कि बहुत से लोग मुख्यमंत्री व अन्य बड़े पदों पर पहुंचने के बाद अपनी ताकत को बटोरते हैं, लेकिन मैंने अपनी ताकत अपने साथियों के दम पर बनाई है। कांग्रेस में जाने का फैसला भी उनके सलाह मशवरे के बाद ही लूंगा। भाजपा पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए बीरेंद्र सिंह ने कहा कि महत्वपूर्ण यह है कि आप राजनीति में किसान व कमेरे वर्ग के साथ कितना खड़े हैं। क्या राजनीति में रहकर सामाजिक दृष्टि से दबे हुए लोगों को आप ऊपर उठाने की सोच रखते हैं, क्योंकि अगर किसी भी वर्ग में गरीबी रहेगी तो प्रजातंत्र अर्थवहीन हो जाता है। 1991 से अब तक चल रहे आर्थिक सुधारों के युग में किसान ने खून पसीना एक करके देश का पेट पाला, लेकिन आर्थिक दृष्टि से उसे कितना लाभ हुआ, इस पर सरकारों को फिर से अध्ययन करने की जरूरत है।
क्या उद्योगपति-व्यापारियों को ही आर्थिक सुधार का हक है, किसान को नहीं : बीरेंद्र
बीरेंद्र सिंह ने कहा कि क्या हमारा सिस्टम केवल पूंजी पत्तियों के लिए बनाया गया है, क्या उद्योगपति-व्यापारियों को ही आर्थिक सुधार का हक है। क्या किसान को आर्थिक समृद्धि की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि आज तक के इतिहास में किसानों जैसा सफल आंदोलन कभी नहीं हुआ, क्योंकि देश का पेट भरने वाले को अपने पेट की पड़ी हुई है। दूसरों का पेट भरने वाला आज खुद कई बार भूखा सोता है। उसे आर्थिक भूख है। बड़े लोग ओर बड़े होते जा रहे हैं, लेकिन मेहनत करने वाले को कुछ हासिल नहीं हो रहा। बीरेंद्र डूमरखा ने कहा कि अगर कांग्रेस में गए तो फिर आप नजारा देखना कि कितनी बड़ी ताकत के साथ घर वापसी करेंगे।
बेटे बृजेंद्र सिंह पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि कुछ लोगों की राजनीति में आकर पैसा कमाने की चाहत होती है, कुछ लोग राजनीतिक रूप से स्वार्थ सिद्धि चाहते हैं, लेकिन मेरा बेटा बृजेंद्र समझता है कि भाजपा में मैं अपने विचारों की सहमति मन में रखता हूं, क्योंकि वह सहमति मुझे यहां नहीं मिलती। शायद इसीलिए मेरे बेटे ने यह निर्णय लिया होगा। ठीक लोकसभा चुनाव से पहले लिए गए निर्णय का कारण बताते हुए उन्होंने उदाहरण दिया कि 100 मीटर की रेस लगाने की शुरुआत में इतनी स्पीड से नहीं भागते जितनी रेस खत्म होने के वक्त भागते हैं।
हरियाणा को लाल मुक्त बनाने के अभियान में हुड्डा के सारथी रह चुके हैं बीरेन्द्र डूमरखा
1998 में बनाए गए ‘लाल हटाओ-हरियाणा बचाओ’ मोर्चे की अगुवाई भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने की थी। उस वक्त का लाल मुक्त हरियाणा अभियान तीन लांलो बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल के खिलाफ था। उसी दौर में हुड्डा को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से सुशोभित किया गया। यह मोर्चा 2005 तक चलता रहा। फिर कांग्रेस की बनी सरकार में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाया गया जबकि चुनाव कांग्रेस ने भजनलाल के चेहरे पर लड़ा था। भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से जब तक चौधरी बीरेंद्र सिंह डूमरखां कांग्रेस में रहे उनके खुद के मुख्यमंत्री न बनने का दर्द सदा उनकी जुबान पर रहा। सार्वजनिक मंचों से भी वह कई बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कार्यशैली पर भी प्रश्न चिन्ह लगाते रहे। ‘लाल हटाओ-हरियाणा बचाओ’ मोर्चे को ताकत देने में राव इंद्रजीत सिंह, पंडित चिरंजी लाल शर्मा (पिता कुलदीप शर्मा), कर्नल राम सिंह (अहीरवाल बेल्ट के सुपर किंग), कुमारी शैलजा, करतारी देवी (कांग्रेस की बड़ी नेत्री एवं मंत्री) भी प्रमुख रूप से शामिल थे।