BJP BJD Alliance In Orissa : ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटें हैं, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजद ने 12 सीटें, भाजपा ने आठ और कांग्रेस ने एक सीट जीती थी। 1998 में बीजद ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था जो 2009 तक जारी रहा।
चुनाव आयोग जल्द ही आगामी लोकसभा चुनावों के लिए तारीखों का एलान कर सकता है। चुनावी बिगुल बजने से पहले सभी दल अपनी सियासी समीकरण साध रहे हैं। केंद्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने हाल ही में अपने पुराने साथियों के गठबंधन करने के लिए कदम बढ़ाए हैं। इसी कड़ी में पार्टी ओडिशा की बीजू जनता दल के साथ गठजोड़ कर सकती है। ओडिशा उन राज्यों में शामिल है, जहां लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव भी होंगे।
इस बीच कांग्रेस ने गठबंधन को लेकर दोनों पार्टियों पर पर निशाना साधा है। गुरुवार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सरत पटनायक ने कहा कि भाजपा और बीजद के कई नेता दोनों दलों के बीच गठबंधन की बातचीत से नाखुश हैं। पटनायक ने यह भी कहा कि नाखुश नेता कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, यह कोई पहली बार नहीं होगा जब दो दल गठबंधन में चुनाव लड़ेंगे। बीजद 1998 से लेकर 2009 तक भाजपा नीत एनडीए का हिस्सा रही है।
ओडिशा के सियासी समीकरण क्या है?
राज्य में लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा के चुनाव होंगे। ओडिशा में फिलहाल बीजू जनता दल की सरकार है जिसके मुख्यमंत्री नवीन पटनायक है। राज्य की विधानसभा 146 सदस्यीय है। 2019 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजद ने सबसे ज्यादा 112 सीटों पर जीत दर्ज की है। इसके बाद भाजपा को 23 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस के नौ तो सीपीएम के एक विधायक जीते थे। इसके अलावा एक निर्दलीय भी जीते थे।
लोकसभा के समीकरण देखें तो राज्य की कुल 21 लोकसभा सीटें हैं। 2019 में 21 में से बीजद ने सबसे ज्यादा 12 सीटें जीती थीं। इसके बाद भाजपा के आठ तो कांग्रेस के एक सांसद संसद पहुंचे।
बीजद और भाजपा में गठबंधन को लेकर क्या हो रहा है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के तमाम नेता पार्टी की चुनावी हैट्रिक के दावे कर रहे हैं। जिन राज्यों में पिछली बार कम या उम्मीदों के मुताबिक सीटें नहीं आई थीं उनके लिए भाजपा नई रणनीति पर काम कर रही है। इसी कड़ी में पार्टी जल्द ही ओडिशा में बीजद के साथ गठबंधन की घोषणा कर सकती है। ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) का साथ आना तय माना जा रहा है। इसके संकेत बीजद के हालिया एक बयान से मिले हैं। बुधवार को बयान जारी कर ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी ने कहा कि राज्य के लोगों के हित में वह कोई भी कदम उठाएगी।
बुधवार को दिल्ली में प्रदेश भाजपा के नेताओं ने गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। बैठक के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता व सांसद जुएल ओराम ने कहा बीजद के साथ गठबंधन पर चर्चा हुई है। आखिरी फैसला पार्टी का शीर्ष नेतृत्व करेगा।
वहीं, भुवनेश्वर में सीएम नवीन पटनायक की अध्यक्षता में बीजद नेताओं की भी बैठक हुई। बाद में पार्टी उपाध्यक्ष देवीप्रसाद मिश्रा ने बयान जारी किया कि बैठक में लोकसभा और विधानसभा चुनाव की रणनीति पर चर्चा हुई। प्रस्ताव पारित किया गया कि ओडिशा के लोगों के व्यापक हित में बीजू जनता दल कोई भी कदम उठाएगा। बीजद के इसी बयान को भाजपा से समझौते के स्पष्ट संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
कितने सीटों पर गठबंधन हो सकता है?
लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा और बीजद के एक साथ आने के स्पष्ट संकेत हैं। अब सभी की निगाहें दोनों पार्टियों के बीच संभावित सीट बंटवारे पर हैं। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भाजपा ओडिशा की 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। वहीं बीजद 8 लोकसभा सीटों पर लड़ सकती है। लोकसभा सीट बंटवारा 13-8 या 14-7 के अनुपात में हो सकता है। विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे के गणित अभी भी स्पष्ट नहीं है। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि बीजद 100-110 सीटें अपने पास रख सकती है और भाजपा को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए 35-45 सीटें दे सकती है।
सूत्रों ने कहा कि गठबंधन की आधिकारिक घोषणा 12 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओडिशा यात्रा के दौरान होने की उम्मीद है।
क्या है भाजपा-बीजद गठजोड़ का इतिहास क्या है?
ओडिशा में 1998 से 2009 तक बीजद और भाजपा के बीच गठबंधन था। इस दौरान दोनों दलों के गठबंधन ने तीन लोकसभा चुनाव और दो विधानसभा चुनाव लड़े। भाजपा-बीजद गठजोड़ की कहानी बीजू पटनायक के निधन के बाद शुरू होती है। दरअसल, 1997 में ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक का निधन हो गया। इसके बाद नवीन पटनायक ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभाली जो अपने प्रारंभिक जीवन के अधिकांश समय राजनीति से दूर थे। पिता के निधन के बाद नवीन ने सियासत में कदम रखा और दिसंबर 1997 में पिता के नाम पर बीजू जनता दल की स्थापना की। नवीन ने ओडिशा के अस्का लोकसभा सीट से उप-चुनाव लड़ा और सांसद बने।
1998 में दोनों दलों ने किया गठबंधन
1998 में देश में लोकसभा चुनाव हुए थे जिसके लिए दोनों दलों ने गठबंधन किया था। इस चुनाव में बीजद के नौ सांसद चुने गए जबकि भाजपा के सात। 1999 में वाजपेयी सरकार गिर गई और एक साल के भीतर लोकसभा चुनाव कराने पड़े। 1999 में हुए अगले लोकसभा चुनाव में बीजद ने 10 लोकसभा सीटें जीतीं, जबकि नौ सीटें भाजपा ने जीतीं। 2004 के लोकसभा चुनावों में बीजद ने 11 लोकसभा सीटें और भाजपा ने सात सीटें जीती थीं। 1998 और 2004 के बीच नवीन पटनायक ने एनडीए सरकार में दो साल के लिए इस्पात और खान मंत्री की भी जिम्मेदारी संभाली।
पहले 2000 फिर 2004 में भाजपा और बीजद ने गठबंधन में विधानसभा चुनाव भी लड़ा। 2000 में बीजद ने 68 सीटें जबकि भाजपा ने 38 सीटें जीती थीं। नवीन ने केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया और ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
इसके बाद 2004 के विधानसभा चुनाव भी दोनों दलों ने गठबंधन में लड़ा। नतीजों में बीजद को 61 सीटें और भाजपा को 32 सीटें मिलीं। इस कार्यकाल के दौरान सत्तारूढ़ साझेदारों के बीच मतभेद काफी बढ़ गए जिसके कारण उनके रास्ते अलग हो गए।
एनडीए से अलग क्यों हुआ था बीजद?
2009 में लोकसभा और ओडिशा विधानसभा चुनावों से पहले बीजद ने भाजपा से नाता तोड़ लिया। नवीन पटनायक की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, 2007 के कंधमाल दंगों भाजपा की संलिप्तता की आलोचना करने के बाद बीजद एनडीए से अलग हुआ था। इस तरह से 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजद अकेले चुनाव लड़ा। 1998 के बाद दोनों दल फिर एक साथ आने को तैयार हैं अब देखना दिलचस्प होता है कि आगामी चुनावों में बीजद और भाजपा कितने सीटों पर चुनाव लड़ते हैं और इनका इनका प्रदर्शन कैसा होगा।