अभी कुछ दिनों पहले तक एनडीए का 400 सीटों का टारगेट बहुत आसान लग रहा था. पर पिछले हफ्ते बीजेपी के सामने आई कुछ नई दिक्कतों ने इस टास्क को बहुत मुश्किल बना दिया है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार भारतीय जनता पार्टी के लिए 370 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. जो एनडीए के साथ 400 प्लस हो जाता है. इसके लिए पार्टी कड़ी मेहनत भी कर रही है. पीएम लगातार इसके लिए रैलियां और सभाएं कर रहे हैं. पार्टी के दूसरे नेता भी मेहनत कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए साम- दाम- दंड- भेद सभी नीतियों पर काम कर रही है. कांग्रेस और अन्य पार्टियों के लोग जिस तरह बीजेपी में शामिल हो रहे हैं उससे तो यही लगता है कि देश की संसद विपक्षहीन हो जाएगी. पर इधर कुछ दिनों में बीजेपी के सामने अचानक कुछ अवांछित समस्याएं आ गईं हैं. इन समस्याओं को सुलझाने में पार्टी अभी तक असफल ही दिखाई दे रही है
1- कर्नाटक में लिंगायत धर्म गुरु ने केंद्रीय मंत्री के खिलाफ खोला मोर्चा
कर्नाटक की राजनीति में बीजेपी के लिए लिंगायत समुदाय बड़ा आधार रहा है. करीब 17 प्रतिशत आबादी वाला यह समुदाय अगर बीजेपी से नाराज होता है तो पार्टी के लिए कर्नाटक में मुश्किल बढ़ जाएगी. राज्य में लिंगायत समुदाय के बड़े संत जगद्गुरु फकीरा दिंग्लेश्वर महास्वामी ने केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. जिससे भाजपा की टेंशन बड़ गई है. डिंगलेश्वर की नाराजगी इस बात को लेकर है कि प्रहलाद जोशी महत्वपूर्ण लिंगायत नेताओं का टिकट कटवा देते हैं. उनका कहना है कि 2023 के विधानसभा चुनावों में पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार को टिकट कटने में जोशी की ही भूमिका थी. शेट्टार ने हुबली-धारवाड़ सेंट्रल विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. जबकि कांग्रेस ने उन्हें एमएलसी बनाया, अब वह बीएस येदियुरप्पा के सौजन्य से भाजपा में वापस आ गए हैं और अब बेलगाम लोकसभा सीट से पार्टी के उम्मीदवार हैं.
डिंगलेश्वर ने भाजपा नेता केएस ईश्वरप्पा के बेटे केई कांतेश को हावेरी लोकसभा टिकट नहीं मिलने पर भी जोशी पर उंगली उठाई है. बीजेपी केपूर्व डिप्टी सीएम ईश्वरप्पा ने बगावत कर दी है और ऐलान किया है कि वह शिमोगा से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे. संत ने लिंगायतों के लिए ओबीसी आरक्षण की लंबे समय से चली आ रही मांग को भी उठाया है. इसके अलावा उन्होंने समुदाय के सदस्यों को केंद्र सरकार में प्रमुख पद नहीं देने के लिए भाजपा पर निशाना साधा है.उन्होंने कहा कि लिंगायत समुदाय से नौ सांसद चुने गए लेकिन किसी को भी कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया गया. उन्हें केवल केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया गया.जाहिर है कि जिस तरह डिंगलेश्वर हमले कर रहे हैं चुनाव के दिन तक वो बीजेपी के खिलाफ माहौल कर सकते हैं. अगर लिंगायतों के चौथाई वोट भी वो काटने में सफल होते हैं बीजेपी की करीब आधा दर्जन सीटें प्रभावित हो जाएंगी.
2- गुजरात और वेस्ट यूपी में राजपूतों की नाराजगी
पिछले एक सप्ताह से गुजरात और उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ राजपूतों ने मोर्चा खोल रखा है.गुजरात में जहां केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला की टिप्पणी को लेकर प्रभावशाली राजपूत समुदाय खुलकर भाजपा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहा है.वैसे ही पश्चिमी यूपी में गाजियाबाद में वीके सिंह का टिकट कटने के बाद राजपूत महासभा खुलकर बीजेपी के खिलाफ आ गई है. राजपूतों का कहना है कि गाजियाबाद और नोएडा में राजपूतों की बहुलता के बावजूद यहां से किसी राजपूत को टिकट नहीं दिया गया. राजकोट से भाजपा के उम्मीदवार रूपाला द्वारा कई बार माफी मांगने के बावजूद विरोध कम होने का नाम नहीं ले रहा है. यही हाल पश्चिमी यूपी का है केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह , उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार राजपूतों को मनाने में लगे हुए हैं पर सफलता मिलती नहीं दिख रही है.
गुजरात में राजपूतों की आबादी लगभग 17% है और सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्र के कुछ हिस्सों में उनका प्रभाव है. यही हाल पश्चिम यूपी में कई सीटों पर राजपूतों की है.गुजरात में क्षत्रिय समुदाय के नेता राज शेखावत के पार्टी से इस्तीफा देने के बाद भाजपा को बड़ा झटका लगा है. शेखावत करणी सेना के एक गुट के अध्यक्ष भी हैं, ने दावा किया कि चुनाव के लिए टिकट वितरण में भाजपा द्वारा समुदाय की उपेक्षा की जा रही है.भाजपा में सौराष्ट्र क्षेत्र से राजपूत समुदाय से केवल पांच विधायक और एक राज्यसभा सांसद हैं.यहां तक कि गुजरात कैबिनेट में एक उल्लेखनीय क्षत्रिय चेहरे का भी अभाव है. इस बीच क्षत्रिय नेता वासुदेवसिंह गोहिल ने कहा है कि समुदाय चुनाव परिणाम बदलने में सक्षम हैं.
पश्चिमी यूपी में भी राजपूत इस बार चुनाव परिणाम बदलने के मुहिम में लग गए हैं. 7 अप्रैल को ननौता गांव में पश्चिमी यूपी के ठाकुर समाज के लोग क्षत्रिय समाज की संघर्ष समिति की ओर से ‘क्षत्रिय स्वाभिमान महाकुंभ’ में हिस्सा लेने के लिए जुटे. यहां पश्चिमी यूपी ही नहीं राजस्थान और हरियाणा से भी लोग आए थे. बीजेपी के बड़े राजपूत नेताओं की सुलह की कोशिशों के बावजूद 11 अप्रैल को मेरठ के सिसौली में,13 अप्रैल को गाजियाबाद के धौलाना और 16 अप्रैल के सरधना के खेड़ा में क्षत्रिय स्वाभिमान महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है.
3-यूपी में बसपा का खेल .
उत्तर प्रदेश में इधर कुछ महीनों से लगातार बीएसपी को बीजेपी की बी टीम कहकर टारगेट किया जाता रहा है.पर बीएसपी ने इस बार के लोकसभा चुनावों में ऐसा गेम खेला है कि अब कोई भी नहीं कहेगा कि बीएसपी बीजेपी के लिए काम कर रही है. बीएसपी यूपी में ऐसे उम्मीदवार खड़ी कर रही है कि बीजेपी के उम्मीदवारों के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है.वेस्ट यूपी की कम से कम एक दर्जन सीटों पर बीएसपी के उ्म्मीदवार बीजेपी के कोर वोटर्स हैं. जाहिर है कि ये बीजेपी का ही वोट काटने का काम करेंगे. जैसा कि उम्मीद की जा रही थी कि बीएसपी ऐसे उम्मीदवारों को टिकट देगी जो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित होंगे. पर सहारनपुर, अमरोहा और कन्नौज को छोड़कर बीएसपी ने कहीं से भी ऐसे उम्मीदवार नहीं खड़े किए हैं जो बीजेपी को फायदा पहुंचा सके. इसके उलट बीएसपी ने ऐसे उम्मीदवार खड़े किए हैं जो बीजेपी या आरएलडी के लिए और मुश्किल तय करेंगे.मेरठ , बिजनौर, पीलीभीत, कैराना , मुजफ्फरनगर , बागपत आदि में बीएसपी ने ऐसे कैंडिडेट तय किए हैं जो केवल बीजेपी को कमजोर कर रहे हैं.
4-इस बार असंतुष्ट अपना मुंह खोल रहे हैं
मोदी-शाह की जोड़ी का यह कमाल रहा है कि टिकट न मिलने पर भी असंतुष्ट बागी नहीं हो रहे थे. पर इस बार लोग टिकट न मिलने पर मुंह खोल रहे हैं. हरियाणा -राजस्थान , कर्नाटक , बिहार हर जगह असंतोष देखने को मिल रहा है. हरियाणा में टिकट न मिलता देख पहले बिजेंद्र सिंह गए उसके बाद उनके पिता चौधरी विरेंद्र सिंह भी कांग्रेस में वापसी कर ली. कर्नाटक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता के.एस. ईश्वरप्पा पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है. ईश्वरप्पा ने पहले भी येदियुरप्पा और उनके परिवार पर आरोप लगाते रहे हैं
ईश्वरप्पा ने घोषणा की है कि वे शिवमोगा निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवार और मौजूदा सांसद बी.वाई. राघवेंद्र (येदियुरप्पा के बेटे) के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे. वे यहां तक कह चुके हैं कि वे पीछे नहीं हटेंगे भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके घर आ जाएं.बिहार में केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने भी टिकट कटने की अपनी कसक दिखाई है. जाहिर है कि मन से चुनाव प्रचार में अभी तक उतर नहीं सके हैं.राजस्थान में 2 बार बीजेपी सांसद रहे राहुल कस्वां ने न केवल कांग्रेस का हाथ थाम लिया है बल्कि उन्हें कांग्रेस ने टिकट भी दिया है.