लोक सभा वस राज्य सभा: लोकसभा की तरह नहीं है राज्यसभा, कभी भंग नहीं होता सदन, सीटों और मेंबर्स का तरीका भी अलग, 10 Points

भारतीय लोकतंत्र में लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों, का बेहद अहम रोल है. राज्यसभा का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 80 में तो वहीं लोकसभा का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 81 में किया गया है. आइए जानते हैं दोनों में क्या है अंतर.

Difference Between Lok Sabh and Rajya Sabha: भारतीय संसदीय प्रणाली में संसद के दो सदन हैं. एक है लोकसभा, दूसरा है राज्यसभा. लोकसभा को ‘आम जनता का सदन’ या संसद के निचले सदन के रूप में जाना जाता है. वहीं, राज्यसभा को ‘राज्यों का परिषद्’ या संसद के ऊपरी सदन के रूप में जाना जाता है. भारतीय लोकतंत्र में दोनों ही सदन का बेहद अहम रोल है. राज्यसभा का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 80 में है तो वहीं, लोकसभा का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 81 में किया गया है. इन दोनों सदनों के कार्यकल, उम्र से लेकर काम करने के तरीके में बहुत अंतर होता है. आइए 10 प्वाइंट में समझें लोकसभा और राज्यसभा में क्या है अंतर. 

सीटों की संख्या: राज्यसभा और लोकसभा की सीटों की संख्या में अंतर होता है. वर्तमान में लोकसभा  सदन की सदस्‍य संख्‍या 543 है हालांकि, इसकी अधिकतम सदस्य संख्या 552 है. वहीं, राज्यसभा की सीटों की संख्या 250 है.

मनोनीत सदस्य: भारत के राष्ट्रपति लोकसभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय के 2 सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं. वहीं, राज्यसभा में राष्ट्रपति कला, शिक्षा, समाजसेवा एवं खेल जैसे क्षेत्रों से संबंधित 12 लोगों मनोनीत करते हैं.

सदस्यों का चयन: लोकसभा में सदस्य आम जनता द्वारा मतदान प्रक्रिया से चुने जाते हैं. वहीं,  राज्यसभा में सदस्य राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं.

उम्र: लोकसभा में सदस्य बनने के लिए न्यूनतम उम्र 25 साल होनी चाहिए. वहीं. राज्य सभा में आयु सीमा 30 साल है.

कार्यकाल: लोकसभा का अधिकतम कार्यकाल पांच साल होता है तो वहीं राज्यसभा एक स्थायी सदन है और  इसे भंग नहीं किया जा सकता.

यहां एक तिहाई सदस्य हर दो साल में रिटायर होते हैं. राज्यसभा का कार्यकाल छह साल का होता है.

अध्यक्षता कौन करता है: लोकसभा की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है. वहीं, राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता उप-राष्ट्रपति करता है.

शक्तियों में क्या है अंतर: धन विधेयक को केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है.यह सदन देश में शासन चलाने के लिए धन आवंटित करता है. वहीं, राज्यसभा को धन विधेयक के संबंध में अधिक शक्तियां प्राप्त नहीं हैं.

राज्यसभा को इस बिल को सिफारिश या बिना सिफारिश के 14 दिन के भीतर लोकसभा को वापस भेजना होता है. वह इस पर रोक नहीं लगा सकती है. कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसका फैसला लेने का अधिकार लोकसभा अध्यक्ष के पास होता है.

राज्यसभा सिर्फ बजट पर चर्चा कर सकता है, उसके अनुदान के मांगों पर मतदान करने का अधिकार नहीं है.

राष्ट्रीय अपातकाल समाप्त करने का संकल्प लोकसभा द्वारा पारित किया जा सकता है.

बता दें, दो शक्तियां ऐसी है जो राज्यसभा के पास तो हैं लेकिन लोकसभा के पास नहीं है. पहली यह कि यह संसद को राज्य सूची (अनुच्छेद 249) में से विधि बनाने के लिए अधिकृत कर सकता है. वहीं दूसरी शक्ति की बात करें तो राज्यसभा संसद को केंद्र और राज्य दोनों के लिए नई अखिल भारतीय सेवा के सृजन के लिए अधिकृत कर सकता है (अनुच्छेद 312).

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हम आपको बता दें कि गुजरात में पार्टी का यह अधिवेशन 64 साल के बाद हो रहा है। इस अधिवेशन का विषय “न्याय पथ : संकल्प, समर्पण, संघर्ष” होगा। इस अधिवेशन के जरिए जिला कांग्रेस कमेटियों (डीसीसी) की शक्तियां बढ़ाने, संगठन सृजन के कार्य को तेज करने, चुनावी तैयारियों और पदाधिकारियों की जवाबदेही तय करने का निर्णय किया जाएगा। पार्टी के शीर्ष नेता, कार्य समिति के सदस्य, वरिष्ठ नेता और अखिल भारतीय कमेटी के सदस्य अधिवेशन में शामिल होंगे।

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